गोंडवाना का इतिहास
गोंडी महापुरुषों की अमर गाथा ,गोंडी बोली गोंडी संस्कार तथा सम्पूर्ण गोंडी रीतिरिवाजों के बारे में जानकारीMONDAY, 5 OCTOBER 2015
आदिवासी (जनजातीय) संस्कृति धर्म दर्शन.
आदिवासी (जनजाति)
आदिवासियों (गोंडवाना भू-भाग के निवासियों) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मेरा भारतीय इतिहास से तात्पर्य नहीं है, भारतीय इतिहास में तो आदिवासी (गोंडी) गण गाथाओं का कसायल गंध भी नहीं मिलता ।
मुझे तो उस भू-भाग में पल्लवित, पुष्पित आदिम समाज की खुशबू आ रही है, जो अनंतकाल पूर्व इस श्रृष्टि की अगाध जलदाह में अंकुरित सम्पूर्ण भू-मंडल का आधे से ज्यादा हिस्सा "गोंडवाना लैंड" कहलाया और इसके प्रथम अधिपति गोंडवानावासी (गोंड) आदिवासी कहलाए ।
गोंडवाना लैंड की उत्पत्ति एवं विकास
आधुनिक युग में कपोल कल्पित बातों, काल्पनिक आस्था एवं तथ्यों का कोई स्थान नहीं है ।
इस युग के लोग शोधपरख ज्ञान और अनुसंधान पर विश्वास रखते हैं, विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों द्वारा ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं पुरातात्विक स्त्रोतों पर किए गए गहन शोध एवं अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि धरती (पृथ्वी) की उम्र ३५ करोड़ वर्ष है, अर्थात धरती की उत्पत्ति लगभग ३५ करोड़ वर्ष पूर्व हुई ।
धरती का स्वरुप प्रारंभ में वायु की गतिशील, द्रवित, तप्त अंगार का गोला था, कालान्तर में यह तप्त अंगार का गोला ठंडा होकर धूल, मिट्टी, पत्थर, चट्टान मिश्रित भू-भाग में परिवर्तित हो गया. यह भू-भाग सम्पूर्ण सृष्टि का एक चौथाई हिस्सा निर्मित हुआ और शेष तीन चौथाई जलमग्न रहा ।
इस प्रारंभिक भू-भाग को वैज्ञानिकों दारा "पेंजिया" कहा गया. कालान्तर में २० करोड़ वर्ष पूर्व पेंजिया शनैः शनैः दो भागों में विखंडित हुआ ।
इस पेंजिया के विखंडित भू-खण्डों में से उत्तरी भू-खण्ड को "लौरेशिया" (अण्डोद्वीप) एवं दक्षिणी भू-खण्ड को "गोंडवाना लैण्ड" (गण्डोद्वीप) कहा गया ।
लाखों वर्षों के कालान्तर में भू-गार्भिक बदलाव के कारण गोंडवाना लैण्ड (गण्डोद्वीप) शनैः शनैः पुनः पांच भू-खण्डों में विभक्त हो गया, जिससे गोंडवाना का पंचमहाद्वीपीय- अफ्रिका, दक्षिण अमेरिका, कोयामूर, आस्ट्रेलिया एवं अंटार्कटिका बने ।
पुरातात्विक, भौगोलिक एवं मानवशास्त्रीय अनुसंधानों ने यह भी सिद्ध किया कि जीव जगत की प्रथम जीव की उत्पत्ति इस श्रृष्टि में व्याप्त सत्व तत्व मिट्टी, हवा, ऊर्जा एवं पोकरण (दलदल) से हुई ।
गोंडवाना लैण्ड में प्रथम मातृ एवं पितृ शक्तियों से विस्तारित मूल मानव वंश ही आज का गोंड आदिवासी मूलनिवासी समाज है ।
प्रकृति एवं मानव समाज में आदिवासियों की भूमिका
प्रकृति के व्यवहार से प्राकृतिक संसाधनों में विभिन्न मौसम चक्र/परिवर्तनों/बदलावों आदि के स्वरुप तथा प्राणीजगत के जीवन चक्रण एवं तात्विक संघर्षण से उत्पन्न तरंगित शक्तियों को अनंतकाल से अपने रीति-रिवाज, परम्परा, कला-कौशल एवं संस्कृति में समाहित करते हुए जीवन यापन करने वालों को सरल शब्दों में गोंड (आदिवासी) कहा जा सकता है ।
सीधे शब्दों में- आदि व अनंतकाल से इस धरा (गोंडवाना भू-भाग) पर निवास करने वालों को आदिवासी कहा जाता है ।
आदिवासी वह है जो अपने जीवन की अटूट आस्था को प्रकृति के कण-कण में स्थापित करता है, इसलिए जीवनदायिनी प्रकृति आदिवासियों द्वारा सर्वोच्चशक्ति के रूप में पूजा जाता है ।
अतः प्रकृति पर अटूट आस्था एवं विश्वास की सर्वोच्चशक्ति सबसे बड़ा "बड़ादेव" है तथा बड़ादेव के आध्यात्म को मानने वाला गोंड आदिवासी है ।
आदिवासियों की आस्था ही नहीं, प्रकृति तत्वों, जीवों एवं वनस्पतियों के व्यवहार का दिव्यदृष्टि परख ज्ञान और विज्ञान की मान्यता भी है कि प्रकृति की सर्वोच्चशक्ति बड़ादेव (निराकार) है ।
बड़ादेव (जिसमे उत्पत्ति एवं विनाश की शक्ति है) द्वारा प्रकृति की संरचना रची गई, इसके पश्चात जीवों की उत्पत्ति हुई तथा सूरज, चाँद, तारे आदि इसी संरचनात्मक संचलन शक्ति से यथास्थान स्थापित हुए ।
तब से सभी ग्रह नक्षत्र सतत रूप से अपने पथ पर पुकराल में परिभ्रमण कर रहे हैं, आदि अनंतकाल से इन्ही प्राकृतिक तत्वों, जीवों एवं वनस्पतियों के व्यावहारिक शक्तियों को अपने जीवन के सांस्कारिक व्यवहार में उतार कर जीवन जीने की कला का प्रमाण ही आदिवासीपन है ।
आज भी आदिवासी प्राकृतिक संपदा (जल, जंगल और जमीन) से अपने प्राकृतिक व सामाजिक जीवन निर्वाह की आवाश्यक